World Happiest Man: 12 सालों तक ब्रेन की जांच के बाद भी साइंटिस्ट नहीं खोज पाए उदासी, क्योंकि ये है दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान, आखिर कैसे?

अक्सर कहा जाता है कि पैसों से खुशी नहीं खरीदी जा सकती. कम तनख्वाह पर नाखुशी दिखाइए और ये सुनने के लिए तैयार हो जाइए।
लेकिन एक शोध के नतीजे कुछ और ही कह रहे हैं. इसके मुताबिक, पैसों से न केवल खुशी मिलती है, बल्कि जैसे-जैसे दौलत बढ़ती है, खुशी का ग्राफ भी ऊपर होता जाता है।
एनुअल इनकम 80 लाख से ऊपर जाते ही खुशी धड़ाक से बढ़ने लगती है और बढ़ती ही चली जाती है। एक रिपोर्ट आई है, जो बताती है कि सालाना कितनी दौलत कमाने पर आप खुश रहने लगेंगे।
नोबेल पुरस्कार विजेता इकनॉमिस्ट का ये शोध पैसों को खुशियों की चाबी बताता है. वहीं इंटरनेट पर दुनिया का सबसे खुशहाल शख्स खोजें तो एक ही नाम आता है- मैथ्यू रिचर्ड.
साइंस ने पूरे 12 साल तक ब्रेन की ठोक-पीट के बाद माना कि यही दुनिया का सबसे प्रसन्न आदमी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डेनियल काह्नमैन ने 33 हजार से ज्यादा अमेरिकी वयस्कों को शोध का हिस्सा बनाया, जिनकी सालाना आय 10 हजार अमेरिकी डॉलर से कम थी, यानी भारतीय मुद्रा में लगभग सवा 8 लाख रुपए।
18 से 65 साल के इन लोगों की प्रतिक्रिया के बाद साइंटिस्ट ने माना कि हां, दौलत का खुश रहने से संबंध है. ये वही नोबेल विजेता हैं, जिन्होंने साल 2010 में कहा था कि पैसों से खुशी का कोई लेनादेना नहीं है. ताजा रिपोर्ट नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज में छपी। साल 1946 में जब हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत से आजादी की जंग छेड़े हुए था, तभी फ्रांस के सुदूर गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ।
मैथ्यू रिचर्ड नाम के इस बच्चे के माता-पिता फिलॉसफी पढ़ाते. मैथ्यू बाकी फ्रेंच बच्चों की तरह ही सामान्य स्कूल-कॉलेज गया और मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स में पीएचडी कर डाली. ये बड़ी डिग्री थी।
उस दौर में बड़ी नौकरी दिलाने के लिए काफी से भी ज्यादा बढ़िया, लेकिन ये फ्रांसीसी युवक नाखुश था। खुशी की तलाश में मैथ्यू ने फ्रांस छोड़ा और तिब्बत पहुंच गए. वहां वे दलाई लामा के फ्रेंच दुभाषिए का काम करने लगे।
साथ में वे मेडिटेशन किया करते. बौद्ध धर्म से जुड़ी बाकी चीजें सीखते. धीरे-धीरे समय बढ़ता गया और मैथ्यू की खुशी भी बढ़ती चली गई. यहां तक कि उनके करीब आने वाले लोग भी हैरतअंगेज तरीके से खुश रहने लगे।
मैथ्यू खुद मानने लगे कि उन्हें हरदम खुश रहने की तरीका आ चुका है और कोई भी बदलाव उन्हें उदास नहीं करता। विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की ठानी. वहां के न्यूरोलॉजिस्ट्स ने उनके स्कल पर 256 सेंसर लगा दिए, जिससे भीतर हो रही हरेक हलचल का पता लग सके।
ये रिसर्च 12 सालों तक चली. इसमें दिखा कि जब भी मॉन्क ध्यान करते, उनका मस्तिष्क गामा विकिरणें पैदा करता था. ये ध्यान और याददाश्त को बढ़ाने में मदद करती हैं। सेंसर के जरिए ये भी दिखा कि मैथ्यू के ब्रेन का बायां हिस्सा जिसे प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कहते हैं, दाहिने भाग से काफी ज्यादा एक्टिव था।
ये हिस्सा क्रिएटिविटी से तो जुड़ा ही है, साथ ही खुशी से भी जुड़ा है. साइंटिस्ट्स के दल ने ऐसा कभी नहीं दिखा था. आखिरकार शोध करने वालों ने मान लिया, मैथ्यू के भीतर इतनी ज्यादा खुशी है कि निगेटिविटी के लिए कोई जगह ही बाकी नहीं। यही रिसर्च बाकी बौद्ध संतों पर भी हुई।
इस दौरान दिखा कि लंबे समय तक मेडिटेशन की प्रैक्टिस करने वालों के दिमाग में काफी सारे बदलाव होते हैं. यहां तक कि लगातार तीन हफ्तों तक 20 मिनट तक ध्यान से भी दिमाग के भीतर बदलाव आने लगे। रिचर्ड की किताब हैप्पीनेस- ए गाइड टू डेवलपिंग लाइफ्स मोस्ट इंपॉर्टेंट स्किल में बताया गया है कि कैसे आम लोग भी दिन के सिर्फ 15 मिनट निकालकर खुश रह सकते हैं।
लेकिन इसके लिए ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है. रोज सुबह सबसे पहले कोई खुशी की बात सोचें. हर दिन 10 से 15 मिनट तक सिर्फ और सिर्फ अच्छी बातें सोचना शुरू करें. पहले-पहल दिमाग यहां-वहां भागेगा, उसपर काबू पाकर दोबारा प्यार और खुशी वाली घटनाओं के बारे में सोचें।
सिर्फ 3 हफ्तों के भीतर ब्रेन में बदलाव होने लगेगा. आप पाएंगे कि मुश्किल हालातों में भी दिमाग कंट्रोल खोए बिना सामान्य रहने लगता है.